Friday, December 26, 2008



शांत हो जा पाकिस्तान
शांत हो जा पाकिस्तान नहीं तो हर हिन्दुस्तानी की कसकर पडेगी लात भुल जाएगा युद्ध करने की बात्।
पाकिस्तानी सेना के सेनापति महोदय कयानी सहाब सम्भल जाएँ, बहुत सह लिया हिन्दुस्तान ने। आप क्या समझते है,आपका खुन-खुन है हमारा खुन पानी। हमारे देश के युवा के पास खुन का एसिड है जो एक कतरा भी तुम्हारे ऊपर गिर जाएगा तो जल जाओगे समझे।
मुशर्रफ़ कहाँ तु भुल रहा है आज कैमरे के सामने हिन्दी बोल रहा है,जो तु हिन्दी बोल रहा है वो भी हिन्दुस्तान की है। कारगील युद्घ में जब तुझे मुहँ पर पडी थी लात। आज फिर खाने का मन कर रहा है तुझे शर्म नहीं आई ये बोलते हुए कि हिन्दुस्तान की औकात नहीं हमला करने की। अबे यदि हमला कर दिया न तो सब अपने शोचालय मे बंद नज़र आओगे। और तु किस जनता पर उछल रहा है, मुशर्रफ़ जिसने तुझे लात मारकर देश से भगा दिया।
भारत जिसे की हर क्षेत्र मे महारत हासिल है, चाहे वो कुरुक्षेत्र हो या शिक्षा, हर में हम तुमसे आगे हैं।
हमारे देश के जितने युवा आज स्कूल काँलेजों में पढ़ रहे है। उन्हे यदि छोड़ दिया जाए तो शायद तुम्हारे हर एक सैनिक का चिकेन जैसी हालत बना देंगें हर साइज में काटेंगे समझे।
अभी भी वक्त है, सम्भल जा पाकिस्तान नहीं तो बर्बाद कर देंगे बहुत तेरे साथ प्यार भरी बातें कर लीं। शायद तुझे पता नहीं हमारा देश पहले बात करता है, नहीं समझे तो लात मारना भी जानता है। तु किस पर उछल रहा है, अमेरिका पर या अपने घरोंदे दुश्मन तालीबान पे। जब गोली खाने का वक्त आएगा तो तेरे पास कोई नहीं नज़र आएगा।
लगता है हमारे देश के युवा के लिए वह समय आ गया है जब हम सभी युवा, पाकिस्तान के लाहोर, करांची मे ………… करने जाएंगे।

राकेश कुमार
पिसु अध्यक्ष

Thursday, December 25, 2008

जरदारी! जंग की तैयारी
पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरदारी खुलेआम जंग का ऐलान कर रहें हैं। उन्होने एक संवाददाता सम्मेलन मे यह कहा की पाकिस्तान को भी कम नहीं आके हमारी सेना युद्घ के लिए तैयार है। यह वक्तव्य उस समय आया है, जब भारत के प्रधानमंत्री ने युद्घ की आशंका को दुर किया है। उन्होने आतंकवादी ढाँचे को धवस्त करने की माँग अंतराराष्ट्रीय समुदाय के सामने की है।
शायद लगता है जरदारी ने कभी युद्घ नही देखा है तभी तो करने को तुले है। युद्घ में जरदारी उन ताकतों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो उनकी बीवी के हत्या के जिम्मेदार थें, उनके साथ मिलकर युद्घ के लिए तैयार हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के चीफ बैतुल्ला महसूद ने दावा किया है कि हमारे हथियार बंद लडाके तैयार है। शायद जरदारी भारत को हल्का समझने लगे है। जरदारी को इतना सोच लेना चाहिए कि पाकिस्तान की सक्रिय फोज 6,19,000 है और भारत के पास विश्व की तीसरी सबसे बडी फोज लगभग 14,14,000 सक्रिय सैनिक है। भारत के रिजर्व बल-12,00,000 है और वही पाकिस्तान के रिजर्व बल -5,12,800 है, तब भी जरदारी किस चीज का रौब दिखा रहे है। जितने पाकिस्तान में सैनिक है उतना भारत के जेलों में बंद कैदी हैं जिन्हे यदि छोड़ दिया जाए तो पाकिस्तान के लिए सरदर्द बन सकते है। भारत से जरदारी किस सबूत की माँग कर रहे है, कि आतंकी हमारे देश के है या नहीं? तो पाकिस्तान खुद हि जाँच कर ले!
आखिर किस हैसियत से पाकिस्तान जाँच करेगा जब जरदारी अपने बीवी के हत्यारे को अभी तक नहीं पकड सके और हत्यारे के साथ मिलकर भारत से युद्घ करने को तैयार है, तो किस हैसियत से जाँच करेगें। बेनजीर भुट्टो की हत्या और जरदारी का राष्ट्रपति के गद्दी पर बैठना जरदारी को भी बनजीर की हत्या में शामिल होने का संकेत देता है। क्योंकि सत्ता के लिए कोई भी किसी भी हद तक गिर सकता है। हमारा देश शांति प्रिय देश है, जो कि युद्घ नहीं करना चाहता है। लेकिन भारत को युद्घ के लिए उकसाना पाकिस्तान को बहुत महंगा पड़ सकता है। शायद जरदारी अजगर के रुप को नही जानते वो भी बहुत शांत रहता है और जब गुस्सा आता है तो सामने वाले को निगल जाता है उनकी हड्डियाँ तक नहीं छोडता है।
राकेश कुमार

पिसु अध्यक्ष

Wednesday, December 24, 2008






शायद मेरा नहीं
मैं वह हुँ जो अपने आपको बहुत कोसती हुँ, शायद दोनों मेरे नही है। हाँ, मैं बात कर रही हुँ- बाल और राज ठाकरे की। मेरी ही कोख से क्षत्रपति शिवाजी ने जन्म लिया उस कोख के ये नही हो सकते। मै बहुत दुखी हुँ, मेरे छाती पर चढकर आतंकीयों ने मेरे बच्चों पर हमला किया और ये दोनों मेरे आंचल को पकडकर मेरे हि बच्चों का गला दबाने का साहस कर रहे हैं। शायद इन्हें यह नहीं पता कि मैं ही हुँ, जो पूरे देश की आर्थिक स्थिती को बना के रखती हुँ। पुरा देश मेरे उपर गर्व करता है, लेकिन ये मेरे शरीर के अंदर दो घाव निकल आए हैं, जो धीरे-धीरे मेरे अंदर की शक्ति को खाते जा रहे है। मैनें कभी सोचा भी नही था कि मेरे हि अपने मेरे उपर ज़ुल्म करेंगें। आज जब हमारा राष्ट्रगान गाया जाता है तो पूरा भारत सीधा खाडा होकर पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा गाता है तो मुझे बहुत हि आंनद आता है। क्योंकि इसमें मराठों को पूरे देश से जोडने की बात की है और मेरे ये दोनो हि पूरे महाराष्ट्र को बर्बाद करने मे तुले है मेरे नासमझ बच्चों को भी इन्होंने अपनी गंदी राजनीति का छिंटा लगाने में कोई कमीं नहीं रखी है। मै तो माँ हुँ जो कभी गलत नहीं देखना चाहती शायद वो वक्त आ गया है जब मेरे बच्चे मिलकर इन कौरव चाचा-भतीजे का अंत करेंगे तभी मेरी मन को शांती मिलेगी। जब कोई बच्चा अपने माँ की इज्जत बर्बाद कर रहा होता है तो माँ के लिए महासुर बन जात है और वही महासुर चाचा भतीजे बन चुके है और इनका अंत जरुरी है।
राकेश कुमार
पिसु अध्यक्ष



गजनी का ग्रहण टला
आमिर खान की बहुचर्चित फिल्म गजनी पर मंडरा रहे "रोक" के काले "बादल" रीलिज़ के ठीक एक दिन पहले मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बाद छट गए।
रीलिज़ से पहले ही यह फिल्म आमिर खान की हेयर स्टाईल को लेकर चर्चा में रही। दक्षिण भारत की इस रीमेक के वितरक उस वक्त सकते में आ गए, जब इसके रीलिज़ पर रोक लगा दी गई।
रोक हटने के बाद वितरकों के साथ-साथ इस फिल्म का बेसब्री से इंतजार कर रहे दर्शकों ने भी राहत की सांस ली।
लेकिन इस सारे घटनाक्रम से कई सारे सवाल भी उठते हैं, पहला सवाल तो काफी पुराना है जो कि फिल्म पब्लिसीटि से जुडा हुआ है, कि क्या जानबूझकर आमिर अपनी फिल्मों को रीलिज़ से पहले विवादों से जोडते है, क्योंकि उनकी पिछली दो फिल्में 'मंगल पांडे' और 'फना' भी विवादों में रही थीं। फना के वक्त तो बकायदा आमिर सामाजिक कार्यकर्ता बन गएं थे और नर्मदा बचाओं आंदोलन के समर्थन में उतर आए थे। इस बार सडकों पर बाल काटते नज़र आए, लेकिन फिल्म के रीलिज़ से ठीक पहले इस तरह की मुकदमेंबाजी अब आम बात होती जा रही है।
इस प्रकार अब प्रचार के लिए कोर्ट को भी लोग नही छोड रहे हैं। ऐन मौके पर याचिका दाखिल होना, फिल्म पर रोक लगना, मीडिया में मुफ्त फिल्म का प्रचार होना, और अंत में रीलिज़ से ठीक कुछ घंटों पहले आपस में ही मसला सुलझा लेना, एक सोची समझी मार्केटिंग रणनीति का हिस्सा है, जो कि आनेवाले समय में और बढेगा, क्रेजी 4 हालिया इसका उदाहरण है, जिसका समझौता कोर्ट के बाहर हुआ था।
कहीं न कहीं भारत में न्यायालयों को इस पर ध्यान देना होगा, और इस पर उचित कारवाई भी करनी होगी, ये सारे घटनाक्रम यह दिखाते हैं कि कैसे न्यायिक व्यवस्था का मखौल उडाया जा है।

विशाल तिवारी
पिसु सदस्य

Monday, December 22, 2008








बाल के खाल बाल ठाकरे
अपनी खोखली राजनीति और बेवजह के फालतू ब्यान देने वाले हमारे देश के सबसे बडे नेता और अपने आपको तिस मार खाँ समझने वाले बाल ठाकरे जिन्हे जनता सिर्फ यह मानती है कि, जब आप शादी या पार्टी कर रहे होते है और कोई महानुभाव वहाँ बिना निमंत्रण के पहुँच के आपको पार्टी की कमियाँ गिनाए वैसे हि हमारे देश के ये चाचा-भतीजे हैं जो कि सिर्फ बोलना जानते हैं। शायद बाला साहब यह नहीं जानते है कि भारत ने जब पाकिस्तान से 20 आतंकवादीयों की माँग की तो पाकिस्तान ने राज ठाकरे की माँग कर दी। उस दिन राज ठाकरे अखबारों में भी नज़र नहीं आ रहे हैं।
जब मुम्बई में सरेआम आतंकी मासूमों को मौत के घाट उतार रहे थे तब आप कहां थे और आपके सैनिक कहाँ थे, चलिए छोड़िए वैसे आप से बडा आतंकी बोली बोलने वाला नेता शायद तो नहीं है, वैसा आपका भतीजा जन्म लेने की कोशिश कर रहा है। मैं आपको बताना चाहूँगा कि हमारे देश में कानून है और कानून सबसे सर्वोपरी है। बाला साहब के कथनानूसार “आतंकवादी कसाब को सरेआम फांसी दे देनी चाहिए। अब उस पर केस चलाने की जरुरत नही है”। यह एक ऐसा शक्स बोल रहा है जिसने क्षेत्रवाद के नाम पर कितने मासूमों का खून बहाया है और आप ही उस आतंकवाद के खिलाफ कैसे बोल रहे है। शायद पाकिस्तान के द्वारा 20 आतंकवादियों के बदले राज ठकरे की माँग कोई गलत नहीं है। राज ठाकरे के साथ बाल ठाकरे को फ्री में दे देना चाहिए। कम से कम हमारे इस शांति प्रिय देश से बातूनी नेता तो कम होगा।

राकेश कुमार

पिसु अध्यक्ष

Tuesday, December 16, 2008






(कविता)
भोग से शोक तक
निकम्मी सरकार
देश के गद्दार
करते है सच्चाई से इंकार
कुर्सी से है प्यार
जनता से है तकरार
काम से है इंकार
नोटों से है प्यार
करते है दुश्मनों से प्यार
शहीदों की करते है इज्जत तार-तार
तब बनती है सरकार
नेताओं की निकलती है कार
वोटों का है बुखार
जनता का जीना हुआ दुश्वार
एम.एस.कडारी



पानी के नाम पर बिकते शराब
पश्चिम दिल्ली : उत्तमनगर बस अड्डा के समीप लगने वाले दुकानों और पान के रेडीयाँ पर शराब मुहैया कराया जाता है। शाम होते ही दुकानों व रेडीयों के समीप लोगों का हुज़ुम देखा जा सकता है।
सुत्रों के मुताबिक शराब पीने के इच्छुक व्यक्ति दुकान के पास खडे शराब विक्रेता के साथ गोपनीय तालमेल स्थापित कर चुपके से पैक बना गटक जाते है। गैरकानूनी तरीके से चल रहे इस धंधे को फलते-फुलते देख दुसरे दुकानदारों के सीने पर साँप लोटता है।
बात प्रशासन कि करें तो महज 300-400 मिटर की दूरी पर उत्तमनगर थाना स्थित है। बावजूद इसके लोग बेधडक गैरकानूनी तरीके से शराब बेचते है जो प्रशासन पर सवालिया निशान लगाता है।
मानवता शर्मसार तो तब होती है जब दुकान पर एक पिता अपने 8 या 10 साल के बेटे को शराब का पैक बनाने को मजबूर करता है और खुद पैसे वसुलने में मशगुल रहता है।
विकास कुमार
पिसु सदस्य

Saturday, December 13, 2008





भारत एक कुरुक्षेत्र
मुम्बई की आतंकवादी घटना के बाद से देशवासियों ने अपना गुस्सा सरकार के उपर निकाला उस गुस्से का समना कोई भी पार्टी अकेले झेल नही सकी। इसलिए सभी पार्टी संसद भवन में एक राग में नज़र आई। जहाँ आड्वाणी के द्वारा देश के सबसे प्रतिष्ठि जगह ससंद भवन में दिया गया वक्तव्य कांग्रेस कौरव है और बीजेपी पांडव उनके हल्केपन को उजागर करता है। हम पुछना चाहते है आडवाणी जी से की अगर कांग्रेस कौरव है और बीजेपी पांडव तो क्या सम्पूर्ण भारत वर्ष कुरुक्षेत्र है, और मरना हमारी नियती है।
यदि आपको ज्ञात होगा जब दिल्ली में लगातार ब्लास्ट हुए थे, तब तो आडवाणी दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार की खुब आलोचना कर रहे थे।
क्या आडवाणी को मुम्बई धमाकों के बाद लगा कि अब छिछोरी राजनीति करना ठिक ना होगा। उन्होने अपने घुटने जनता के डर से कांग्रेस के सामने टेक दिए, और जहाँ हमारे प्रधानमंत्री यह माफी मांग रहे है कि हमारी सुरक्षा में चुक हुई, तो दिल्ली में भी तो ब्लास्ट की खबर खुफ़िया ऐजेंसी ने पहले ही दे दी थी, उस समय प्रधानमंत्री ने सुरक्षा में चुक क्यों नहीं मानी। और अब कह रहे है सिस्टम पर गौर करेंगें। “अब पछताए क्या जब चिडियां चुग गई खेत्” अब क्या हो सकता है। मुम्बई धमाकों में मंत्री जी का तो कोई अपना था नहीं, इसलिए तो आज सिर्फ माफी मांग के अपनी कमजोरी छुपा ली।
यदि एक टुक में कहें तो ये नेता जितने भी ससंद में बैठते है उन्हे यह बात समझ आ गई की जनता है तो हम है। मुम्बई की जनता ने सभी सोए हुए नेताओं के गाल पर करारा थप्पड़ जडकर उनकी नींद खोल दी। आज सभी नेता एक ही गाना गा रहे है हम साथ-साथ है।
राकेश कुमार
पिसु अध्यक्ष

Friday, December 12, 2008



मिनी स्कर्ट
मेरे दोस्त के स्कुल में एक मोहतरमा है, जो अपने आप को शायद नेहा धुपिया से कम नहीं समझती है। वैसे तो आप कह सकते है, की जब कोई नई नवेली दुल्हन घर में आती है, तो वह भी घर में सबका ध्यान रखती है और बाद में एक बडा सरदर्द अपने ससुरवालों कि लिए बन जाती है। उसी तरह यह नेहा धुपिया भी मेरे दोस्त के लिए बहुत हि बडा सरदर्द है, सिर्फ दोस्त के लिए नहीं पुरे स्कुल के लिए वो एक घाव साबित हो रहीं है।
एक दिन नेहा धुपिया जी अपने स्कुल आई तो पुरा स्कुल उन्हे देख कर अचम्भित था। पुरे टिचर और बच्चे उनकी तरफ आशचर्यचकित निगाहों से देख रहे थे, क्योंकी मोहतरमा छोटी स्कर्ट व हाफ बांह की टी-शर्ट पहन रखीं थीं। अब और आपको आशचर्य होगा कि उस दिन ढंठ भी कुछ ज्यादा ही थी। लगता है, धुपिया जी को ढंठ नहीं लगती या फिर उन्होने वह कपडा नया खरीदा होगा और बच्चों को दिखाने के लिए स्कुल में पहन कर चलीं आईं। आपको और आशचर्य होगा कि यह मोहतरमा पश्चिमी सभ्यता कि एकदम खिलाफ हैं। तब भी वो पश्चिमी सभ्यता के कपडों का प्रचार करती हुईं नज़र आईं। जब मैडम जी का ही यह हाल है तो बच्चों का क्या होगा।
चलिए छोडिए अब बात करते है, उनकी पढाई पर, क्लास में आते हि अपने पारिवारीक झगडे और अपनी प्रेम कथा सुनाना शुरू कर देती है, और पढाई के मामले में कुछ ज्यादा नहीं बोलेंगे। अधजल गगरी झलकत जाए ये कहावत धुपिया जी पर बिल्कुल सटीक बैठती है।

राकेश कुमार
पिसु अध्यक्ष
A Bitter Truth
Today private institute has covered the education sector. They provide so many courses for better secure carrier. They make their policies and format. Hence, they are likeable by student. No matter you obtain average or highest marks they hold your hand and makes you dream able. They promise for providing good faculty, placement and job guarantee but their main target is to earn lot of money in the foam of fee. Their higher fee amount makes them higher & topest institute of world. Their inexperience faculty is teaching new comers. Is this better for fresher carrier? Student feels embarrassment to being a part of institute. They promise to all students, we will provide you placement & job guarantee but they fail to provide it. Their degree is not so sure and consider be all organization. If we will compare a govt. institute student & private institute student them a govt. institute student is a selected by companies. After spend a huge amount, it is not sure your dream will be fulfill. This is a bitter truth about private institute, which can not digest by student.
TRISHNA KEN
MEMBER OF PISU




MY FUTURE
As we students study’s in different various institutes, face some of the problems which are common in all institutes. I am also one of the students of an institute. I want to share these problems through the medium of this site. When I bought the prospectus of the institute in which I study, I get to know about it. The prospectus shows that there is a library, a video editing lab, a news room, good faculty, etc. But in reality their was no perfect running library and neither the editing lab. The faculty is nowhere to be seen but the prospectus had lots of them. Now some of new courses are also started in their institute but there is no place for students to study. We have shifts of studying now. The new students have classes in the morning but the old ones rarely have classes. And, now I think my future is also going to be like theirs (the old students).
Well we hope for the best in our future.
Vishakha Kabra
PISU MEMBER


जाएँ तो कहाँ जाएँ
जनसंख्या में व्र्रद्धी और लगातार काँलेज तक पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या भी बढ़ रही है। खासकर भारत की राजधानी दिल्ली में हाँ दिल्ली वसियों के पढ़ाने के लिए काँलेजों की आवश्यकता है, वहीं भारत के हर प्रांत से खासकर उत्तर भारत और उत्तर पूर्व भारत से लगातार पढ़ाई के लिए छात्र दिल्ली आ रहे हैं। ऐसे में काँलेजों में नामांकन के लिए जहाँ कट-आँफ 95% तक होता है, वहीं सीमित नामांकन रिक्तियाँ होने की वजह से छात्रों को नामांकन नहीं मिल पाता है। इसका कारण है पिछले कई दशकों से काँलेजों की संख्या में कोई व्र्रद्धि नहीं हुई है। दिल्ली विश्वविद्यालय के अन्तर्गत आने वाले 83 काँलेजों की क्षमता सभी शिक्षार्थियों के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे में छात्रों के सिवाए इसके कि वे प्राइवेट संस्थानों की तरफ कूच करें- कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता।
फिर शूरु होता है प्राइवेट संस्थानों के झांसे का दौर। तरह-तरह की लोक लुभावन वादे छात्रों से किए जाते हैं। सौ फीसदी प्लेसमेंट और आकर्षक वेतन वादों से छात्र नामांकन करा लेते हैं। पर सच तो यह है कि इस्के अलावा उनके पास कोई चारा भी नहीं बचता।
आज छात्रों की बहुत बडी संख्या सरकार से दिल्ली में काँलेजों की संख्या में बढोतरी की मांग कर रही है। काँलेजों की संख्या बढाना आज की महत्वपूर्ण आवश्कता बनकर सामने आ रही है जिसके लिए सरकार को अविलम्ब व्यवस्था सुनिश्चित करानी होगी।

ललितेंद्र भारती
स्वतंत्र पत्रकार


वाह शीला जी !
शीला दीक्षित के नेतृत्त्व में कांग्रेस लगातर तीसरी बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई है। कंग्रेस सुप्रिमो सोनिया गाँधी ने दिल्ली की मुख्यमंत्री पर अपना पूरा भरोसा जताया था जो दिल्ली वासियों ने भी स्वीकार किया। विकास के मुद्दे पर चुनाव में अपनी साफ सुथरी छवि के साथ शीला दीक्षित ने पूरे ज़ोश एवं विश्वास के साथ कदम रखा जिसका नतीजा भी आज काँग्रेस के पक्ष में है।
भाजपा के नारे “महंगी पडी काँग्रेस” सचमुच भाजपा के लिए ही मँहगी पड गई।
एक तरफ जहाँ शीला दीक्षित के नेतृत्त्व में काँग्रेस विधानसभा चुनाव के लिए उतरी थी वहीं भाजपा में मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित उम्मीदवार के चयन में खींचातानी जनता में भाजपा के अंदरुनी सामंजस्य की कमी के रुप में सामने आई।
विजय मल्होत्रा की राष्ट्रीय छवि दिल्ली वासियों को अधिक नहीं लुभा पाई। आतंकवाद और मँहगाई के मुद्दे को लेकर भाजपा चुनाव में आई तो जरुर पर मल्होत्रा के नेतृत्व में जनता को समझाने में नाकाम रही।
अब विकास के रथ को शीला सरकार कहाँ तक दौडा पाती है- उनके लिए चुनौती भरा काम है। दिल्ली वसियों के विश्वास पर शीला सरकार को खरा उतरना ही होगा।
ललितेंद्र भारती
स्वतंत्र पत्रकार

Thursday, December 11, 2008






ज़िदां रहने के मोसम बहुत है, मगर
जान देने की रुत रोज आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनों का रुसवा करे
वो जवानी जो खुंन में नहाती नहीं

हम कभी भुला नहीं पाएंगे जिन्होनें मुम्बई पर आतंकी हमला होने पर अपनी जान की परवाह नहीं की और निकल पडे आतंकवादी से मुकावला करने मुंबई ए.टी.एस. चीफ़ हेमन्त करकरे, मुम्बई के चर्चित एनकाउंटर स्पेशलिस्ट जिनके नाम से अंडरवर्ल्ड थर्राता था वे थें विजय सालस्कर सेना के मेज़र संदिप मुम्बई के एडिशनल कमिशनर अशोक मरुती राव कामते ओर बहुत सारे वीर जवान थें, जिन्होंने अपनी जान गवाई भले ही हमारी आंखें मे नम हो लेकिन हमारी छाती गर्व से चोडी हो गई। जब तक ऐसे वीर जवान हमारी सुरक्षा में हैं कोई आतंकी हमारे देश में आएगा तो ज़िदा नहीं जाएगा।
इन वीर शहिदों को शत्त-शत्त नमन करता हुँ।
कुन्दन कुमार झा


आतंकवाद या समाधान
हर धामाकों के बाद हमारे देश के बडे बडे नेताओं का बयान आता रहता है, कि हम आतंकवाद को खत्म करके ही दम लेंगे। ये बयान युपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी का था। आखिर कब खत्म करेंगे आतंकवाद को, जबकि अगले वर्ष लोक सभा के चुनाव होने वाले हैं । जिस आतंकवाद पे आज इतना हल्ला किया जा रहा है, उसका समाधान हमारे नेता के पास नहीं है। अगर हमारे नेता के पास समाधान होता तो इतना इंतजार करने की नौबत ही नहीं आती। कुछ दिन पहले आपने साध्वी प्रज्ञा के बारे में सुना होगा। जब एटीएस साध्वी प्रज्ञा से पुछ-ताछ कर रही थी, तब हमारे देश के बडे-बडे दिग्गज नेता लालक्र्रष्ण आडवानी और राजनाथ सिंह अपने चुनावी सभा में कह रहें थें, कि साध्वी प्रज्ञा को बेवजह परेशान किया जा रहा है। जबकि उनका रिश्ता किसी आतकवादी संगठन से नहीं है। आखिर इन नेता को कैसे पता चल जाता है,कि उनका संबध किसी संगठन से है या नहीं। जब तक हमारे देश के नेता आतंकवाद को राजनितिक मुद्दा बनाते रहेंगें बयानबाज़ी करते रहेंगें, तब तक आतंकवाद पर काबू पाना नामुमकिन सा लगता है।
कुन्दन कुमार झा
पिसु सदस्य

कमांडो का मिस यूज
प्रधानमंत्री मनमोहन सिहं ने ऐलान किया है कि चार मेट्रो शहरों मे भी एन.एस.जी. के सेंटर बनाए जाएँगे। क्या नेता अपने आगे पीछे ब्लैक कैट्स रखने का आदत छोड़ पाएँगें। एन एस जी में अभी 4000 से 5000 कमांडो है, जिनका एक बडा हिस्सा वी आई पी सिक्युरिटी मे खपा दिया जाता है। क्या करोड़ों रुपये की ट्रेनिगं के बाद ट्रेंड हुए कमांडोज का नेताजी की सुरक्षा मे इस्तेमाल करना सही है। आर्थिक राजधानी मुम्बई के घटनाक्रम के बाद अवाम अब खुलकर यह सवाल पुछ रहा है, नेता सिर्फ अपने बारे मे सोचते है ? इसके खिलाफ़ हमारी आवाम को एक जुट होकर आवाज उठानी चाहिए। 20 सालों मे कई आतंकवादी घटना हुई लेकिन इन एक्सपर्ट कमांडोज का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया। 1988 में ब्लैक थंडर आँपरेशन के बाद एन.एस.जी. का कोई खास इस्तेमाल नहीं हुआ मुम्बई में ही उनका सही इस्तेमाल किया गया। क्या नेता इन कमांडोज को आपने साथ रखना अपना स्टाइल समझत्ते है ? यह सवाल संसद के भीतर गुँजना चाहिए। और यह निठ्ल्ले सांसदों से हर नगरिक आंतरिक सुरछा के बारे मे सवाल करे।सवाल करना हर नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार है
राकेश कुमार
अध्यक्ष पिसु


पाकिस्तान के मुँह पर तमाचा
मुम्बई में आंतकवादी घटना को अंज़ाम देने वाले आमिर कसब का रिशता फरीदकोट गाँव जो कि पाकिस्तान मे बताया जाता है। बी.बी.सि. ने पाकिस्तानी रिपोर्टरों के जरिए इसकी पड्ताल की। फरीदकोट गांव के इमाम ने माना की आमिर कसब का धर्म के प्रति उसका ज्यादा रुझान था। बी.बी.सि. ने अपने पाकिस्तान के स्थानिय रिपोर्टरों के जरिए इस खबर की जाँच की। वैसे फरीदकोट नाम के गांव में 3-3 थें,लेकिन दो गांवों मे कसब को जानने वाला कोई नहीं था ओर वहीं एक गांव था जहां कसब पला बढा था। जब बी.बी.सि. रिपोर्टर फरीदकोट गांव पहुँचा, 20 हजार की आबादी वाले इस गांव की हालत कुछ सही नहीं दिखी। वहाँ के लोगों ने भी कसब को अपने गाँव का निवासी कबूल नहीं किया। लेकिन वहाँ पर बडी तादद मे खुफिया एजेंसियों के लोग हरकत में दिखे।
रिपोर्टर के अनुसार “जब मैं पुछते हुए कसब के घर पहुँचा तो वहाँ खुफिया एजेंसियों के लोग मोजूद थें। कैमरा, माइक्रोफोन को देखते हि वह बाहर निकल आए। एक महीला नज़र आई उन्होंने कहा-मैं आमिर कसब को नहीं जानती। मैं गफूर कसब की बैगम हूँ,ओर मेरा कोई बच्चा गायब नहीं है। वहाँ पर कई लोग कैमरा, माइक्रोफोन को देख घबराने लगे, ओर एक शक्स ने तस्वीरें लेने से मना किया।जब हमने उनसे पुछा तो वह वहाँ से चले गए।जब मैं गाँव के बाहरी हिस्से में पहुँचा तो वहाँ भी मैंने आमिर कसब के बारे में पुछा तो सबने वहीं घर बताया। मस्जिद के इमाम ने बताया कि गफुर का एक लड्का था जिसका नाम आमिर कसब था। लेकिन कई दिनों से उसका संर्पक उसके पिता से नहीं हो पा रहा है”।

RAKESH KUMAR



मुम्बई मे आग कहा गए राज
मुम्बई के लिये मनसे का गढन करने वाळे राज ठाकरे उस समय कँहा गए ज़ब आर्थिक राजधनी के सीने पर आतंकवादी अपने खुन भरे पांव लेकर पुरी मुम्बई वासियों को अपनी गोली का निशाना बना रहे थे 1 आज कहा गए राज जो कि मुम्बई मे किसी गेeeeeर मराठी को देख्नना नही चाह्ते है1 उन्हें तो उन आतंकवादियों से सामना करना चाहिएं सिर्फ़ निह्थे पर मनसे अपना बल दिखाती है1 यदि आतंकवादियों पर मनसे प्रमुख अपना बल दिखाते तो शायद मुम्बई कि जनता उन्हें एक अच्छे नेता के रुप मे मान लेते 1 एक कहावत हे बडे जहरीले साँप बेढे रह्ते हे और छोटे साँप कुछ ज्यादा हि उछ्ल्ते रह्ते हे ।वही हाल राज का हे देख रहे हे कि बडे नेता जब जनता के गुसे के सामने नही टिक रहे हे तो वो किस खेत कि मुली हे 1 राज को कहना चाह्ते हे बंद कर अपनी श्रेत्रीय गंदी राजनीतिक नही तो जिस दिन मुम्बई कि जनता का दिमाग घुमा तो मनसे प्रमुख मन से राजनीति नही कर पांएगे ।
राकेश कुमार
अध्यक्ष पिसु




मरते लोग सोती सरकार
पिछले दिनों देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई में जिस तरह आतंकवादियों ने मुम्बई की सड्कों पर खुलेआम मौत का नंगा नाच किया और जिस तरह दुरसाहस के साथ यह कत्लेआम किया उससे मुम्बई के साथ-साथ भारत ही नहीं पुरा विश्व सकते में है।यह हमला मुम्बई पर ही भले ही हुआ हो लेकीन भारत के विश्व में आर्थिक महाशक्ति होने के दाव पर भी प्रश्नचिन्ह खडा करता है, क्योंकि यह हमला कोई पहला नहीं है,इससे पहले भी आतंकवादीयों ने जब,जहाँ,जैसे कि तर्ज पर हमला किया। भारत न तो इसको रोकने में सफल हो रहा है और न ही इन आतंकवादियों पर कोई कार्यवाही कर रहा है।कई बार तो शक भी होता है,कि एक आम भारतीय के मरने से सरकार को कोई फर्क भी पड्ता है यी नहीं। जब दिल्ली में बम धमाके हुए थे, तो देश के ग्रहमंत्री दिन में तीन बार अपने वस्त्रों को बदलते पाए गए। कुछ लोगों ने तो उन्हें इस बात के लिए वस्त्रपुरुष के विशेषण से भी नवाज़ा। महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री के लिए मुम्बई धमाका एक छोटी घटना है तभी तो मुख्यमंत्री,फ़िल्म निर्माता रामगोपाल वर्मा और अपने बेटे को ताज के अंदर घुमाने ले जाते है,जबकी ताज में रतन टाटा को अंदर जाने नहीं दिया गया। विपक्षीयों के लिए तो यह राजनेतिक चरगाह बन जाता है।
हर नेता आतंकवादी हमले के बाद संतावना बयान “हम चिजों को देख रहे है” तत्काल कारवाई की जाएगी,हमारी सबसे बडी बदनसिबी यह है, की हम अजहर जैसे लोगों को पालते है और हवाई जहाज में बिठाकर दामाद जैसे विदा करते है। रुबियाँ अपहरण काँड के मुज़रिमों को बिरयानी खिलाते है। अमेरिका पर अगर एक हमला हुआ तो उसने पाकिस्तान से लेकर अरब तक ईंट से ईंट बजा दी,कोई इज़राईल के एक य्वक्ति पर हमला कर के देखे तो,लेकिन हमारी सरकार की गाँधीगिरी तो कभी गई ही नहीं,हम सभी से आज्ञा मिलने के बाद ही कारवाई करेंगे।
आज जरुरत है कडे निर्णय लेने कि, क्योंकि आतंकवादी का अब मकसद साफ है “भारत की रीढ की हड्डी को तोड दो” यानी भारत की आर्थिक ठिकानों पर हमला।
अगर यशवंत सिन्हा के शब्दों में कहे तो “शिखंडी” प्रधानमंत्री जागो। !!!
विशाल तिवारी

Tuesday, December 9, 2008

निजी शिक्षण संस्थानों में भविष्य से खिलवाड
कुकुरमुत्तों की तरह देश की उग आये निजी शिक्षण संस्थानों विशेषकर दिल्ली जो की देश की राजधानी है में खुले इन संस्थानों के पास बच्चों के देने के लिए सपने होते हैं। अगर दुसरे शब्दों में कहें तो ये संस्थान “सपनों का सोदागर” है।
दिल्ली में डिस्टेंश एजुकेशन के नाम पर पान की गुमटियों की तरह खुले इन संस्थानों के पास मूलभूत सुविधाएँ तक नहीं है, दो कमरो के किराए के मकान में चल रहे इन अधकचेर शिक्षाघरों को कोई सरकारी एजेंसी जाँच-पड्ताल नहीं करती,ओर एच आर डी मंत्रालय कान में तेल डालकर शास्त्री भवन में सोया हुआ है।
पुरे दिल्ली में ऐसे सैकडों संस्थान है जो एम.बि.ए., बी.बी.ए., एम.सी.ए., बी.सी.ए., मास कम्यूनिकेशन,फैशन,मल्टिमीडिया के कोर्स संचालित करते है,ये पी.टी.यू.,सिक्किम मनीपाल इत्यादि के दूरस्थ शिक्षा का कोर्स संचालित करते है ओर छात्रों से मोटी रकम यह कहकर वसूलते है कि वे उन्हें 100% प्लेसमेंट देंगे, वे ऐसे बच्चों को धड्ल्ले से यह जानते हुए प्रवेश ले लेते है, जबकि उस बच्चे में यह क्षमता दूर-दूर तक नहीं होती।
सबसे बडी विडम्बना यह है कि, अगर हम मास कम्यूनिकेशन का ही उदाहरण ले जो मीडिया देश मे शोषण के खिलाफ कार्यवाई कि बात करता है, आज वही अपने नाक के नीचे हो रहे शोषण के खिलाफ न कुछ लिखता है, न कुछ बोलता,कारण सबका अपना हित है, क्योंकि आज मीडिया को इंटर्न के रुप में बिना पैसा का नोकर मिल जाता है, ओर उसके लिए मास कम्यूनिकेशन के बच्चे राँ मेटेरियल की तरह होते हैं ओर वह खुद उनका शोषण करता है।
अधिकत्तर बच्चे जो कि बहुत दुर से आते है ओर दिल्ली में फिस को लेकर उनका खर्च 10,000 महिने का खर्च बैठता है उन्हें कोई 1,000 की नोकरी देने को तैयार नहीं होता।
न जाने कितने बच्चे हर साल कितने सपने लेकर दिल्ली आते है, लेकिन शिक्षा माफियाओं के चंगुल में आकर उनके सपने शूरू होने से पहले हि उन अधकचरे शिक्षाघरों की गलियों में ही दम तोड देते है।
विशाल तिवारी

हल्ला बोल
हल्ला बोल इन प्राइवेट इन्स्टिट्यूट के शोषण के विरोध में, नहीं तो समय चला गया तो हम तो पछ्ताएँगे साथ हि हमारे जो पिछे की पिढी भी हमारे तरह इन प्राइवेट इन्स्टिट्यूट के मकड़ जाल में फंस जाएंगे। फिर एक जीवन हमारे जैसे बिना कैंपस ओर बिना मोज-मस्ती किये ही उसका यह बेशकिमती समय बर्बाद हो जाएगा।
अब हमें अपनी गहरी नींद से जागना होगा,अब समय आ गया है हल्ला बोलने का अपने अधिकार के लिए लड्ना हि पडेगा, नहीं तो यह प्राइवेट इंस्टिट्यूट अंग्रेजों की तरह हमारा शोषण करता रहेगा ओर हम सब हि वो युवा है जिनका सपना क्रांतिकारी भगत सिंह देखते थें। बडी दुख की बाद है आज के युवा इतने नपुंसक होती जा रही है जिसका अंज़ाम हमें कुछ दिन बाद भुगतना हि होगा।
मैं अपने दोस्तों के आगे हाथ ज़ोड कर आग्रह करता हुँ। अपना शोषण ना होने दे।यदि आप अपनी आवाज़ के लिए नहीं लडेंगें तो हमारे ओर पालतू जानवर में अंतर क्या रह जाएगा। मैं उन दोस्तों से अपील करता हूँ। आपके पैसे से इन इंस्टिट्यूट वालों का घर चलता है। इन्हें यह बात मनवानी होगी कि युवा क्रांति में कितना ज़ोर होता है।
मत कर ऐ शोषण करने वाले इंस्टिट्यूट बहुत हो गया तुम्हारा नाटक अब जाग चुका है युवा ओर युवा शक्ति, जो किसी की सरकार गिरा सकती है ओर बना भी सकती है, तो ये इंस्टिट्यूट क्या चीज़ है। हम खुलेआम ऐलान करते है यदि यह इंस्टिट्यूट ने हमारी मांगे नहीं मानी तो हम कोर्ट जाऐंगें। ओर नहीं तो राष्ट्रपति भवन के सामने हल्ला बोलेंगे। रोड ज़ाम करेंगे ओर सरकार को यह एहसास कराऐंगे कि हमारी तरफ भी ध्यान दो।
राकेश कुमार
अध्यक्ष पिसु