Saturday, November 21, 2009

तेरी आग ठंडी पर जायगी राज ठाकरे।

अपने घिनौने करतूतों और गंदी राजनिति से सुर्खियाँ बटोरने वाले राज ठाकरे तेरी सारी गार्मी ठंडी पर जायगी। तुम्हारे एक के बाद एक करतूतों ने अती कर दिया है। अपने राजनिति जीवन को मजबूत करने व अस्तित्व में लाने के लिए आज जो हथकंडे तुम अपना रहे हो, वह तुम्हारे राजनिति जीवन को गर्त में ले जाने के लिए काफी है। जिस तरह से हाल ही में राष्ट्रिय भाषा हिन्दी को भरी सभा में तुम्हारे चमचों ने वेइज्जत किया है, वह किसी घोर अपराध से कम नही है। हिन्दी सम्मान कि भाषा है, स्वभिमान कि भाषा है, पूरे हिन्दुस्तान कि भाषा है। तुम कौन होते हो भाषा का पाठ पढाने वाले? तुमने सपा नेता आजमी को थप्पड़ नही मारा है, बल्कि यह थप्पड़ हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी को है। तुम्हें पता होनी चाहिए तेरे थप्पड़ कि गूँज न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में पहुँच चुकी है। आखिर अपनी खोखली राजनिति से तुम क्या दर्शाना चाह्ते हो? तुम्हारे इस मनमानी को हम आजीवन बर्दाशत करेंगे। यह कतई संभव नही है। हमारे सब्र का बाँध जिस दिन टूटेगा, तुम्हे ले डूबेगा। कभी भाषावाद कभी क्षेत्रवाद को बढावा देकर तुम खुद के पैर पर कुल्हारी मारने का काम कर रहे हो। तुम्हे पता होना चाहिए कि वृहतर मुंबई में पिछले दो जनगननाओं के बीच आबादी का ग्रोथ 2.62 प्रतिशत है। जबकि उत्तर भारत खासकर पटना में अकेले यह वृधि-दर 4.40 प्रतिशत है। यानी मुंबई से लगभग दोगुनी। तुम खुद अंदाजा लगा सकते हो कि अलगाव का यह प्रलाप महाराष्ट्र को ही नुकसान पहुँचा रहा है।
तुम्हारी अगर यही हरकत बरकरार रही तो वो दिन दूर नही जब मुंबई कि आर्थिक ताकत का एक बड़ा हिस्सा वो शहर बाँट लेंगे जिसका पूरे मुबंई के आर्थिक स्थिति में बड़ा योगदान है। तब क्या करोगे राज ठाकरे? अकेले चना भांड नहीं फोरता है। कहावत सटीक बैठेगी तुम्हारे लिए। आखिर भाषा से इतना प्रेम होना वाकई अच्छी बात है, मगर भाषा कि राजनिति करना उतनी ही बुरी बात है। तुम्हे पता होनी चाहिए कि तुम्हारी घिनौनी करतूते केवल भाषा तक ही नही सीमित है बल्कि तुम्हारी भरकाऊ भाषण और क्षेत्रवाद कि टिप्पणी भी कई बार एक भारी हिंसा का रुप लिया है। तुमने उन गरीब निर्दोष लोगों पर जुल्म ढाहा है जिनका तुम्हारे राजनिति से दूर-दूर तक कोई वास्ता नही है।
अगर तुम्हे याद हो तो तुम्हारे ही कारण अपने सुनहरे भविष्य के सपने लेकर बिहार से मायानगरी पहुँचा राहुल राज को लांग रेंज से लैस महाराष्ट्र पुलिस के लोगों ने मार गिराया था। राहुल राज भले ही आज इस दुनिया मे ना हो मगर उसने जो हिम्मत और हौसले का परिचय दिया वह आज भी जीवित है। तुम्हे सचेत हो जाना चाहिये भविष्य के उन हजारों राहुल राज से जिनके खून की गर्मी को तुम और गर्म करने का प्रयत्न कर रहे हो। सच कहूँ तो गनिमत यह है कि तुम अपनी हुकूमत अपने माँद में रहकर ही कर रहे हो। एक बार बाहर निकल तो झाँको तुम्हारे जैसे शेर को पिंजरे में घेरने के लिये हजारों हाथ एक साथ तैयार है। श्रीमंत राज ठाकरे अपनी भद्दी और दागदार चेहरे को एक नई पहचान दो। भाषा और क्षेत्रवाद को सम्मान दो। मगर यह बात बस सुनने और पढने के लिये ही सत्य हो सकती है, क्योकि बबूल का बीज रोपने से आम के पेड़ नही उगा करते।
हमें तो डर है, इस बात का कि कहीं तेरे घिनौनी राजनिति के कारण लोग उस महारथियों को सम्मान देना भूल जाएगें जिसका सम्मान आज पूरा देश करता है। लता मंगेशकर, सचिन तेन्दुलकर, माधुरी दिक्षित और कई ऐसे मराठी व्यक्तित्व को तुम्हारा पागलपन प्रभावित कर सकता है। तुम जिस मराठी मानुष के लिए अपने को उनका हितैसी मानते हो तुमने अपने उन मराठी लोगों के लिये क्या किया है,जिसने पिछले साल हुए 26/11 में अपना सहरा खो दिया है। तुम्हे सबक लेनी चाहिये 26/11 हमले में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद होने वाले एटीस चीफ हेमंत करकरे से जो भी एक मराठी थे। मगर उन्होने केवल मराठियों के लिए नहीं लड़ा बल्कि पूरे देश और पूरी मुंबई को बचाने के लिये लड़ा।
कभी-कभी ऐसा लगता है कि तुम सारा नाटक केवल और केवल अपने को सुर्खियों में बनाए रखने के लिये ही करते हो। और इसमे कोई दो राय नही है, कि तुम इसके अलावा भी और कुछ सोचते हो। किसी ने ठीक कहा है कि तुम्हारे जैसे व्यक्ति को लात मारकर मुंबई से बाहर कर देना चाहिये। तुम विविधताओं में एकता वाले भारत देश में अनेकता फैलाने का काम कर रहे हो। गनिमत है कि इतना के बावजूद भी हम बर्दाशत किए जा रहे हैं, क्योकि हमने नही सीखा है क्षेत्रवाद और अलगाववाद कि वो राजनिति जिसे पढकर तुम अपने को विद्वान और काबिल समझ रहे हो।
अंतत: यही कहना चाहुँगा कि अपने अशांत मन और अंगारे बरसाने वाले जुवान को लगाम दो वरना अंजाम बहुत बुरा होगा।
विकास कुमार

स्माईल नहीं मिसाईल था वो

दोस्तों हर रोज कि तरह उस दिन भी मैं बस में जा रहा था। बस से आने-जाने के दौरान कई बार कुछ ऐसी घटनाएँ अचानक घट जाती है,जिसका अंदाजा किसी को पहले नही होता है। इन सब के अलावा कुछ ऐसे मुद्दे होते हैं जिसपर आम लोग गौर नही करते हैं। यात्रा के दौरान कई बार यह महसूस किया है कि इन बसों मे सफर करने वाली लड़कियों में कुछ ऐसी भी होती है, जो इस छोटे से सफर में ही हमसफर की तलाश कर लेती हैं। इन्हे ऐसा करने में जरा सी भी देर नही लगती। अपने मनमोहक अंदाज और आकर्षक पहनावे के सहारे ये उन बेचारे को अपने वस में कर लेती हैं,जो इनके आव-भाव का आकलन नही कर पाता।
मैं बस में सामने वाले सीट से लगे डंडे का सहारा लिए यूँ ही खरा था। बाजू वाले सीट पर एक मोहतरमा हाथ में सफेद रंग कि पर्स लिए बैठी थी। उनके आँखों में काजल और ओठों की लाली खड़े सारे युवाओं को इतना भा रहा था, मानो सबकी निगाहें अटक सी गई हो। बीच-वीच में अपनी जुल्फों में हाथ फेरते हुए उसकी कातिल निगाहें मुझसे टकरा जाती। उसकी नजरों से अपने को छुपाने का भरसक प्रयास करता मगर बीच-बीच में उसकी स्माईल मानों दिल में मिसाईल कि भाँति छेद करता हुआ जगह ढूँढ लेता था। हाँलाकि मेरे साथ ही साथ उसकी यह भावना क्यों थी उससे ज्यादा किसको पता हो सकता था? तभी तो पास खड़े सभी यात्रियों के लिए हमारे बीच का यह कार्यक्रम भरपूर मनोरंजन था।
हद तो तब हो गई जब वो मेरे पिछे-पिछे मेरे आँफिस तक पहुँच गई। मैं इससे पहले कि कुछ समझ पाता, उसके उसी स्माईल ने नासमझ बना दिया। उसके बाद जो हुआ उसका अंदाजा शायद हमने पहले कभी न लगाया था। उसकी छोटी सी एक स्माईल एक बड़ा सा दर्द देकर चला गया।
हमारी बस आपसे यही गुजारिश है कि जब कभी आप ऐसी परिस्थितियों से गुजरे समझदारी से काम ले। अपकी जरा सी नादानी से आप भी ऐसे मिसाईली स्माईल के शिकार हो सकते हैं।

विकास कुमार।

शनि देव मुझे माफ करना

अपने असीम अनुकंपा से लोगो के और पीडा को हरने वाला, जीवन मे सुख और समृधि प्रदान करने वाला आज तुम्हें क्या हो गया है? लोग तेरे चरणों में गिरकर आशीर्वाद लेते है। और तू है जो आज खुद उनलोगों के चरणों के समीप खडे हो,जो एक बार पलट कर देखते भी नही। ऐसी क्या मजबूरी आ गई है? तेरे अनुकंपा से दिये गये पैसों से लोग महल बनबा रहे हैं, कार में घूम रहे हैं, सुन्दर-सुन्दर सामानों से घर सजा रहे हैं, अच्छा खाना खा रहे हैं। और आज तू खुले आसमान के नीचे बैठे उन महलों को निहार रहे हो। उन हाथों के सहारे तुम घूम रहे हो जिनका खुद का कोई सहारा नही है। वे बेसहारा लोग भी तुम्हारे सहारे के बल पर कमा रहे हैं। तुम कमाई की वो कठपुतली बन कर रह गये हो जो केवल अपने सौंदर्य और आकर्षण से पैसे जुटा लेती है। तुम्हारे नाम पर इकत्रित किये गये पैसो का इस्तेमाल गुटका, शराब और जुए में ज्यादा होता है। अब बस करो देव। अपने बिमुखता और सहानुभूति को और ज्यादा न बढाओ। अपने आप को लोगओ के बीच दर्शाओं नही तो वो दिन दूर नही जब लोग तुम्हे भी भद्दी गालियाँ और ताने सुनायेंगे। मुझे माफ कर देना देव यह सारी बाते तुम्हारे हो रहे दुरुपयोग को रोकने के लिये और तेरे उपर विशवास क जगाने के लिये लिखा गया है।
विकास कुमार चौहान्।

Thursday, October 29, 2009

अब बिग बॉस में नो टाइम लौस

क्लर्स चैनल पर प्रसारित होने वाला शो बिग बॉस भले ही कामकाजी और व्यस्त लोगों के लिये बकवास या फालतू शो हो, मगर कुछ युवा वर्ग, छात्रों और घरों मे रहने वाली महिला को यह शो बखूवी एक रोचक और वेतहाशा खुशी प्रदान करता है। इस शो कि लोकप्रियता और रोचकता को करीब से जानने का मौका तब मिला जब मेरी मुलाकात ऐसे ही युवको और युवतियों से एक शादी के कार्यक्रम मे हुई। शुरुआत में उन्लोगों का विचार बहुत हद तक एक जैसा प्रतीत होता नही दिखाई दिया। मगर बाद में शो के कुछ रोचक घटनाओं कि चर्चा सारे विचार को एकमत कर दिया। किसी को कलौडिया कि अटकती हिन्दी पसन्द है, तो किसी को तनाज का डिसअपेअर्। ह्द तो तब हो गया जब उनमे से एक ने राजू श्रीवास्तव के पैंट खिसकने कि चर्चा छेड़ दी। बस क्या था, शूरु हो गई कहानी। कोई खिसकते पैंट का विवरण प्रस्तुत कर रहा था, तो कोई खिसकी हुई पैंट का।
आसपास खड़े लोग भी इस लाईव चर्चा का बखूवी मजा ले रहे थे। शर्म से आँखे झुकाए कुछ युवतियाँ भी मन-ही-मन हँस रही थी। धीरे-धीरे चर्चा बढता गया। कई सारे पहलू पर तर्क-वितर्क के साथ-साथ हँसी-मजाक भी होता रहा। हम युवाओं कि इस मस्ती को देख पास खड़े बुजुर्ग को भी नही रहा गया। वो भी अपने हिलते-डुलते कदमों के साथ हमारे पास आ गए। थोड़ी देर चुप -चाप खड़े होकर हमारी बातों को सुनते रहे। आखीर कब तक चुप रहते। अंत मे बोल ही दिया"तो चलो अब बिग बॉस को देखने मे टाइम लौस नही है। मै भी कल से रामायण और गीता पढने की बजाए टीवी पर ही सुंदर कांड का मजा लूगाँ। साल मे एक बार तो देखने को मिलता है्। और जब सारी फैमली एक साथ बैठ कर इसे देखते है तो मै क्यो नही?"
उनके इस विचार को सुन हमने ज़ोर की ठहाके लगाई और फिर पार्टी मे व्यस्त हो गये।

विकास कुमार चौहान।

Thursday, October 15, 2009

वाह रे दीवाली!

तू बड़ा ही दिलवाला है। तेरी रौशनी जो केवल अमीर शहज़ादों के रंग और खूबसूरत गलियों को उजागर करती है। करना भी चाहिए। लकिन तुम्हे पता होना चाहिए कि अँधेरे में ही रौशनी की महत्ता होती है। वहाँ क्या जो समा पहले से ही रौशन है। कभी इस अँधकार दुनियाँ में तैरते लाखों सपनों पर तो प्रकाश डालकर देखो। सच्चाई सामने होगी। तुम टिमटिमाते हो उस चार-दीवारी पर जिसके चाक-चौबंद पहले से ही चुस्त और दुरुस्त है। कभी उस चार-दीवारी से नीचे उतरकर देखो जहाँ उम्मीद की रौशनी जल और बूझ रही है। तेरे मधुरता का स्वाद चखना तो दूर देखना भी नसीब नहीं होता। उन हाथों में जलकर तुम इतने खुश होते हो कि सारा ईलाका गुँज उठता है। हमारे हाथों में आने से पहले ही तू फूट जाता है। आखीर कबतक जलाएगा तू इस बूझे दिल को? तुम तौफे बनकर जाते हो उसके घर, सोफे पर बैठते हो, गाड़ी में घूमते हो। हम तो बस खोखे में निहारते हैं, तूम्हे सजाकर घूमाते हैं गलियों में। उन्हे पता नही तुम साल-भर लूटकर एक दिन फूटते हो। हमे क्या कल भी लूटे थे, आज भी लूटे हैं। एक तरफ जहाँ तुम धन की वर्षा कराते हो और दूसरी तरफ गरीबी और भूखमरी की नदी बहाते हो। हमारी बस यही कामना है तुम चमकते रहो, दमकते रहो, कभी फुर्सत हो तो इस अंधकार मे भी दीया जला देना।
ये सारी बातें मेरे मन मे तब जगी जब मैं किसी काम के सिलसिले में ग्रामीण ईलाके में गया। वहाँ जो कुछ भी देखा और जाना उससे रहा नही गया और सारी बाते मिसाईल की भाँति बाहर आ निकला।
विकास कुमार।

Wednesday, September 2, 2009

सोचा था

सोचा था, जब मैं वापस गाँव जाऊँगा।
नई स्फूर्ति और ताजगी को गले लगाऊगाँ।
तपती धूल में लोटपोट होकर पोखर में नहाऊगाँ।
नन्हें बच्चों और गईयो-बछडियों से मन बहलाऊगाँ।
खाली पैर खेतों में चलते हुए मौसम का मज़ा उठाऊगाँ।
वहीं पुरानी साइकल को टूटी सडकों और पगडण्डियों पर दौडाऊगाँ।
दोस्तों, साथि्यों सगे सम्बधियों से अपने को मिलावाऊगाँ।

अपनी समझ और बुद्धि का लोहा मनवाऊगाँ।
कुछ समय खुली आसमान के नीचे खाट पर बिताऊगाँ,और सपनों कि दुनियाँ में खोकर सो जाऊगाँ।
सोचा था, अपने प्यार को गले लगाऊगाँ।

उससे मिलकर खुशी के दो बूँद आसूँ बहाऊगाँ।
गाँव की जीवनशैली और संस्कृति में डूब जाऊगाँ।
शहर की भागदौड से अपने को आराम पहुँचाऊगाँ।
लेकिन इतना सोचकर जब मैं गाँव आया।
सारा कुछ बदला-बदला सा पाया।

विकास कुमार

समाचार सार


नमस्कार, दोस्तों आज के इस बदलते परिवेश में टेलीविज़न ने जो वेश बदला है, शायद आने वाले समय में उसका अवशेष भी नहीं मिल पाए। मैं बुराई तो नहीं कर रहा मगर सच्चाई जरूर बताऊँगा। मैं आज के न्यूज़ चैनलों के समाचार से ऐसा लाचार हो गया हुँ, कि उनके प्रति ऐसा विचार आ रहा है। दोस्तों न्यूज़ चैनलों का कामकाज सुबह में बाबा के आसन से शुरु होकर राखी के स्वयंवर में खत्म हो जाता है। बीच-बीच में कभी-कभी एंकरों का भाषण हो जाता है। स्पेशल रिपोर्ट में सानिया की सगाई होती है, और प्राइम टाइम में जैक्सन की विदाई होती है। माना कि तकनीक बदली है, लोगों कि सोच बदली है, मगर क्या ऐसी ही झूठी और अश्लीलता परोसने के लिए इन न्यूज़ चैनलों का उदघाटन हुआ है। दोस्तों खबर ही कुछ ऐसी थी कि मैं बेखबर हो गया और सूध न रही कि मैं जो लिख रहा हुँ, वो भी एक समाचार ही है जो किसी अखबार या वेबसाइट के किसी कोने में दबकर रह जायेगी।
विकास कुमार

बर्बादी

मेरी बर्बादी का बीज उसने उसी दिन बोया था,मेरी खुशी में जब उसने रोया था।
मुझे आह न था इस घडी का,ऐसी लाचारी और मजबूरी का॥
बावजूद इसके उसी के नाम का माला पिरोया था।
मेरी बर्बादी का बीज उसके उसी दिन बोया था॥
हर काम उसी के राजी-खुशी होता था।फिर भी न जाने उसकी आत्मा क्यों दुखी था?
बाहरी माया का उसके ऐसा जाल बिछाया था।उमर भर साथ चलने का झूठ विश्वास दिखाया था॥
एक दिन ऐसा आया, मेरी मजबूरी का वो फायदा उठया।
अनजाने में ही सारे कागजात पर साईन करवाया।मैं अनजान थी, मेरी कुछ समझ में नहीं आयीजब मैं खुद को अपने ही घर से बाहर पायी।
अब तो बस रोती हूँ, उस खुशी पर जिस खुशी पर उसने भी रोया था।
मेरी बर्बादी का बीज उसने उसी दिन बोया था।
विकास कुमार

Thursday, March 19, 2009

फैशन के इस दौर में ढ़के तन की इच्छा न करें!


प्रिय पाठकों मैं एक सीधा-साधा ठेठ देहाती ठहरा। बचपन से ही गाँव की मिट्टी में खेला और और पला बढ़ा हुँ। गाँव की संस्कृति और रहन-सहन मेरे अंदर कूट-कूट कर भरी पड़ी है। पढ़ाई-लिखाई नाम मात्र का किया और ज्यादा वक्त खेतों और खलिहानों में व्यतित किया। लेकिन बेगारी और गरीबी ने मजबूर का दिया गाँव छोड़ने को। अपने छोटे से दिल में बड़ा सा अरमान लेकर मैं चल दिया शहर की ओर्। शुरू-शुरु में तो काफी दिक्कतें आई, लेकिन धीरे-धीरे मैं भी शहरी आव-भाव और संस्कृति में सराबोर हो गया। इन सब के बीच कभी-कभी बस मुझे याद आ जाती थी, गाँव की हरियाली और लोगों का प्यार। लेकिन समय के मार ने मानों मुझे अपंग बना दिया हो। मैं चाहकर भी नहीं जा सकता था, अपने गाँव की ओर्।
पिछले कुछ सालों में मैं कई शहरों में गया, लेकिन इन सभी जगहों पर सबसे ज्यादा चिंतित मुझे वहाँ के पहनावे और संस्क्ड़ड़ति ने किया। आज जिस तरह से फैशन का जादू लागों के सिर चढ़ कर बोल रहा है, खासकर (लड़कियों) वह वास्तव में चिंता का विषय है। शहरी पहनावे को देख कर शायद भगवान भी शरमा जाए, उन्हें भी अपनी कृति पर शर्म आती होगी।
मैं तो कहता हुँ, भैइया अगर जाड़े का मौसम न होता तो शायद नग्न तन भी देखने को मिल जाता। जहाँ तक मेरा विचार है, इस तरह के फैशन को सबसे ज्यादा लड़कियों ने ही अपनाया है। आज लड़कों को यह तय करना मुश्किल हो जाता है, कि कौन-सा कपड़ा खरीदें, क्योंकि लड़कियों ने कुछ छोड़ा ही नहीं है।
शहर में भविष्य का आगमन भी हो चुका है। लोगों को अब ना तो शीतलहर का डर है और न ही मोटे-मोटे कई कपड़े पहनने का झंझट है। अब तो वो आजाद है, पहनने को वो सारी वस्त्र जो उनके शरीर को ढ़कने की अपेक्षा खुला ज्यादा रखता है।
ऐसे में मैंने भी अपना रास्ता साफ करते हुए काम से छुट्टी ले ली है, और कुछ दिनों के लिए ही सही मगर ऐसी चिंता से मुक्ति तो मिलेगी। आपलोगों से भी यह अपील है कि अगर शहर की संस्कृति और कला को संचित करना है, तो तबियत से एक कदम आगे बढ़ाए।
विकास कुमार