Wednesday, September 2, 2009

सोचा था

सोचा था, जब मैं वापस गाँव जाऊँगा।
नई स्फूर्ति और ताजगी को गले लगाऊगाँ।
तपती धूल में लोटपोट होकर पोखर में नहाऊगाँ।
नन्हें बच्चों और गईयो-बछडियों से मन बहलाऊगाँ।
खाली पैर खेतों में चलते हुए मौसम का मज़ा उठाऊगाँ।
वहीं पुरानी साइकल को टूटी सडकों और पगडण्डियों पर दौडाऊगाँ।
दोस्तों, साथि्यों सगे सम्बधियों से अपने को मिलावाऊगाँ।

अपनी समझ और बुद्धि का लोहा मनवाऊगाँ।
कुछ समय खुली आसमान के नीचे खाट पर बिताऊगाँ,और सपनों कि दुनियाँ में खोकर सो जाऊगाँ।
सोचा था, अपने प्यार को गले लगाऊगाँ।

उससे मिलकर खुशी के दो बूँद आसूँ बहाऊगाँ।
गाँव की जीवनशैली और संस्कृति में डूब जाऊगाँ।
शहर की भागदौड से अपने को आराम पहुँचाऊगाँ।
लेकिन इतना सोचकर जब मैं गाँव आया।
सारा कुछ बदला-बदला सा पाया।

विकास कुमार

समाचार सार


नमस्कार, दोस्तों आज के इस बदलते परिवेश में टेलीविज़न ने जो वेश बदला है, शायद आने वाले समय में उसका अवशेष भी नहीं मिल पाए। मैं बुराई तो नहीं कर रहा मगर सच्चाई जरूर बताऊँगा। मैं आज के न्यूज़ चैनलों के समाचार से ऐसा लाचार हो गया हुँ, कि उनके प्रति ऐसा विचार आ रहा है। दोस्तों न्यूज़ चैनलों का कामकाज सुबह में बाबा के आसन से शुरु होकर राखी के स्वयंवर में खत्म हो जाता है। बीच-बीच में कभी-कभी एंकरों का भाषण हो जाता है। स्पेशल रिपोर्ट में सानिया की सगाई होती है, और प्राइम टाइम में जैक्सन की विदाई होती है। माना कि तकनीक बदली है, लोगों कि सोच बदली है, मगर क्या ऐसी ही झूठी और अश्लीलता परोसने के लिए इन न्यूज़ चैनलों का उदघाटन हुआ है। दोस्तों खबर ही कुछ ऐसी थी कि मैं बेखबर हो गया और सूध न रही कि मैं जो लिख रहा हुँ, वो भी एक समाचार ही है जो किसी अखबार या वेबसाइट के किसी कोने में दबकर रह जायेगी।
विकास कुमार

बर्बादी

मेरी बर्बादी का बीज उसने उसी दिन बोया था,मेरी खुशी में जब उसने रोया था।
मुझे आह न था इस घडी का,ऐसी लाचारी और मजबूरी का॥
बावजूद इसके उसी के नाम का माला पिरोया था।
मेरी बर्बादी का बीज उसके उसी दिन बोया था॥
हर काम उसी के राजी-खुशी होता था।फिर भी न जाने उसकी आत्मा क्यों दुखी था?
बाहरी माया का उसके ऐसा जाल बिछाया था।उमर भर साथ चलने का झूठ विश्वास दिखाया था॥
एक दिन ऐसा आया, मेरी मजबूरी का वो फायदा उठया।
अनजाने में ही सारे कागजात पर साईन करवाया।मैं अनजान थी, मेरी कुछ समझ में नहीं आयीजब मैं खुद को अपने ही घर से बाहर पायी।
अब तो बस रोती हूँ, उस खुशी पर जिस खुशी पर उसने भी रोया था।
मेरी बर्बादी का बीज उसने उसी दिन बोया था।
विकास कुमार