Thursday, October 29, 2009

अब बिग बॉस में नो टाइम लौस

क्लर्स चैनल पर प्रसारित होने वाला शो बिग बॉस भले ही कामकाजी और व्यस्त लोगों के लिये बकवास या फालतू शो हो, मगर कुछ युवा वर्ग, छात्रों और घरों मे रहने वाली महिला को यह शो बखूवी एक रोचक और वेतहाशा खुशी प्रदान करता है। इस शो कि लोकप्रियता और रोचकता को करीब से जानने का मौका तब मिला जब मेरी मुलाकात ऐसे ही युवको और युवतियों से एक शादी के कार्यक्रम मे हुई। शुरुआत में उन्लोगों का विचार बहुत हद तक एक जैसा प्रतीत होता नही दिखाई दिया। मगर बाद में शो के कुछ रोचक घटनाओं कि चर्चा सारे विचार को एकमत कर दिया। किसी को कलौडिया कि अटकती हिन्दी पसन्द है, तो किसी को तनाज का डिसअपेअर्। ह्द तो तब हो गया जब उनमे से एक ने राजू श्रीवास्तव के पैंट खिसकने कि चर्चा छेड़ दी। बस क्या था, शूरु हो गई कहानी। कोई खिसकते पैंट का विवरण प्रस्तुत कर रहा था, तो कोई खिसकी हुई पैंट का।
आसपास खड़े लोग भी इस लाईव चर्चा का बखूवी मजा ले रहे थे। शर्म से आँखे झुकाए कुछ युवतियाँ भी मन-ही-मन हँस रही थी। धीरे-धीरे चर्चा बढता गया। कई सारे पहलू पर तर्क-वितर्क के साथ-साथ हँसी-मजाक भी होता रहा। हम युवाओं कि इस मस्ती को देख पास खड़े बुजुर्ग को भी नही रहा गया। वो भी अपने हिलते-डुलते कदमों के साथ हमारे पास आ गए। थोड़ी देर चुप -चाप खड़े होकर हमारी बातों को सुनते रहे। आखीर कब तक चुप रहते। अंत मे बोल ही दिया"तो चलो अब बिग बॉस को देखने मे टाइम लौस नही है। मै भी कल से रामायण और गीता पढने की बजाए टीवी पर ही सुंदर कांड का मजा लूगाँ। साल मे एक बार तो देखने को मिलता है्। और जब सारी फैमली एक साथ बैठ कर इसे देखते है तो मै क्यो नही?"
उनके इस विचार को सुन हमने ज़ोर की ठहाके लगाई और फिर पार्टी मे व्यस्त हो गये।

विकास कुमार चौहान।

Thursday, October 15, 2009

वाह रे दीवाली!

तू बड़ा ही दिलवाला है। तेरी रौशनी जो केवल अमीर शहज़ादों के रंग और खूबसूरत गलियों को उजागर करती है। करना भी चाहिए। लकिन तुम्हे पता होना चाहिए कि अँधेरे में ही रौशनी की महत्ता होती है। वहाँ क्या जो समा पहले से ही रौशन है। कभी इस अँधकार दुनियाँ में तैरते लाखों सपनों पर तो प्रकाश डालकर देखो। सच्चाई सामने होगी। तुम टिमटिमाते हो उस चार-दीवारी पर जिसके चाक-चौबंद पहले से ही चुस्त और दुरुस्त है। कभी उस चार-दीवारी से नीचे उतरकर देखो जहाँ उम्मीद की रौशनी जल और बूझ रही है। तेरे मधुरता का स्वाद चखना तो दूर देखना भी नसीब नहीं होता। उन हाथों में जलकर तुम इतने खुश होते हो कि सारा ईलाका गुँज उठता है। हमारे हाथों में आने से पहले ही तू फूट जाता है। आखीर कबतक जलाएगा तू इस बूझे दिल को? तुम तौफे बनकर जाते हो उसके घर, सोफे पर बैठते हो, गाड़ी में घूमते हो। हम तो बस खोखे में निहारते हैं, तूम्हे सजाकर घूमाते हैं गलियों में। उन्हे पता नही तुम साल-भर लूटकर एक दिन फूटते हो। हमे क्या कल भी लूटे थे, आज भी लूटे हैं। एक तरफ जहाँ तुम धन की वर्षा कराते हो और दूसरी तरफ गरीबी और भूखमरी की नदी बहाते हो। हमारी बस यही कामना है तुम चमकते रहो, दमकते रहो, कभी फुर्सत हो तो इस अंधकार मे भी दीया जला देना।
ये सारी बातें मेरे मन मे तब जगी जब मैं किसी काम के सिलसिले में ग्रामीण ईलाके में गया। वहाँ जो कुछ भी देखा और जाना उससे रहा नही गया और सारी बाते मिसाईल की भाँति बाहर आ निकला।
विकास कुमार।