आधी रात को जब सुनसान गलियों से गुजरता हूं,
तो मुझे मेरी धड़कनों की पूरी आवाज सुनाई पड़ती है।
रात के अंधेरे में जब सोच की गहराइयों में उतरता हूं,
तो सच्चाई से कदम मिलाते हुए भरोसे की चादर बुनता हूं।
समय जो मुझसे आगे होता है,
तन्हाई जो मुझे रोके रखती है।
यादें जो भूला देती है सारे ग़म,
मैं इन सब के बीच खुद को ढ़ोता रहता हूं।
सोचता रहता हूं, खुद को कोसता रहता हूं।
रात के अंधेरे में जब सोच की गहराइयों में उतरता हूं।
मौसम की अंगडाईयों में अपनी थकावट खोता हूं।
फिर अचानक दिखती है मुझे रौशनी की झिलमिलाहट,
अंधेरे को पीछे छोड़ मैं अब उजाले में होता हूं।
अब मुझे मेरी धड़कन सुनाई नहीं पडती है,
और ना ही मेरी सोच अब गहराइयों में उतरती है।
सपनों से बाहर आकर जब खुद को निहारता हूं,
अंधेरे में भूल चुके यादों को मैं सवांरता हूं।
जिन्दगी जीने का आलम की कुछ ऐसा है,
इस दुनिया में अब कुछ नहीं पहले जैसा है।
आधी रात को जब सुनसान गलियों से गुजरता हूं,
मेरी धड़कने मुझसे यही कहती है।